अरावली की पहाड़ियां कमजोर हुईं तो दिल्ली-हरियाणा तक बढ़ेगा खतरा
भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में गिनी जाने वाली अरावली की पहाड़ियां आज अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रही हैं। राजस्थान की पहचान और दिल्ली-हरियाणा के पर्यावरण की रीढ़ मानी जाने वाली अरावली, अब तेजी से खत्म होने की कगार पर है।
अरावली पहाड़ियां पश्चिम से आने वाली गर्म और शुष्क हवाओं को रोककर मैदानी इलाकों को रेगिस्तान बनने से बचाती हैं। यही वजह है कि इनका कमजोर होना पूरे उत्तर भारत के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्यों बढ़ी चिंता
20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक पुराने मामले में फैसला सुनाते हुए अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को मंजूरी दी। इस परिभाषा के अनुसार अब केवल वही क्षेत्र अरावली माने जाएंगे, जिनकी ऊंचाई जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक है।
इस फैसले के बाद 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली अरावली का बड़ा हिस्सा कानूनी संरक्षण से बाहर हो सकता है, जिससे खनन और अतिक्रमण का खतरा और बढ़ गया है।
दिल्ली और हरियाणा पर क्या असर पड़ेगा
अरावली कमजोर होने से दिल्ली और हरियाणा में वायु प्रदूषण बढ़ सकता है। धूल भरी हवाएं सीधे मैदानी इलाकों में पहुंचेंगी और पहले से खराब हवा की स्थिति और गंभीर हो सकती है।
इसके साथ ही भूजल स्तर पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि अरावली वर्षा जल को रोककर जमीन में पानी पहुंचाने का काम करती हैं।
राजस्थान के लिए क्यों है बड़ा खतरा
राजस्थान में अरावली थार मरुस्थल के विस्तार को रोकने में अहम भूमिका निभाती हैं। यदि ये पहाड़ियां कमजोर पड़ीं, तो मरुस्थल का दायरा और बढ़ सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि समय रहते संरक्षण नहीं किया गया, तो इसका असर पर्यावरण, खेती और आम जनजीवन पर साफ नजर आएगा।
अरावली का संरक्षण केवल एक राज्य की नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत की जरूरत है।
